नाग कूआं मान्दिर बनास वाराणसी के इुस मपोखरे मतालाब) के अन्दर एक कुआं है और उस मकए के अन्दर है बहुत ही स्राचौनामशिवलिंग । साल में बस मनागपंचमी के दिन ही यहां परम शिवलिंग के मंदर्शन मिलते हैं। शिवव की इुस मनगरी से जाता है मनाग- लोक का रास्ता, तस्वीर देख कर रह दंग हो जायंगे दंगवाराणसी. शिव की इस नगरी से ही नागलोक जाने का'रास्ता है। नागकुंड में एक कुआं छिपा हुआ है जहां से ही नागलोक जाने का रास्ता है। नागपंचमी पर यहां दर्शन कारनेसे कालसर्पं योग से मुक्ति मिलती है। अपने तरह क अनोखे ।इस मिंदिर में धवार की सुबह सें ही दशन करने वाली की'लाइन लगी है। धार्मिक मान्यतां के अनूसार शिव की नगरी काशी से ही'नागलक जाने का सरस्ता है। बनारस के जेतपूरा शस्थित ।नागकुंड की प्राचीनता किसी से छ्िपी नहीं है। नागकुड केअंदर ही एक कआं है जहां से नागलोक जाने का रास्ता है।इकआं के अंदर प्राचीन शिवलिंग भी स्थापित है जो साल भरपानी में डबा रहता है और नागपचम्मीं क पहले कुड का'पानी निकाल कर शिवलिंग का श्रंगार किया जाता है।धामिक मान्यताआ की माने तो यहा पर आज भौ नाग ।निवास करते है। नागकंड शस्थित काएं का वणन धम...
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धार्मिक और सांस्कृतिक विषयों पर ब्लॉगर का वर्णन: एक धार्मिक और सांस्कृतिक ब्लॉगर वह व्यक्ति है जो अपने ब्लॉग के माध्यम से धर्म, संस्कृति, धार्मिक आदर्शों, त्योहारों, रीति-रिवाजों, और संबंधित विषयों पर जानकारी, विचार, और अभिव्यक्ति साझा करता है। उनके ब्लॉग पोस्ट्स में वे धार्मिक ग्रंथों, सम्प्रदायों के सिद्धांतों, और सांस्कृतिक इतिहास को विश्लेषण करते हैं, और अपने पाठकों को समझाने का प्रयास करते हैं कि धर्म और संस्कृति कैसे हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
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1.काशी विश्वनाथ मंदिर की इतिहास और रहस्य
काशी का मूल विश्वनाथ मंदिर बहुत छोटा था।
17वीं शताब्दी में इंदौर की रानी #अहिल्याबाई होल्कर ने इसे सुंदर स्वरूप प्रदान किया। कहा जाता है
कि एक बार रानी अहिल्या बाई होलकर के स्वप्न में
भगवान शिव आए। वे भगवान शिव की भक्त थीं।
इसलिए उन्होंने 1777 में यह मंदिर निर्मित कराया।
#सिखराजा #रंजीतसिंह ने 1835 ई. में मंदिर का
शिखर सोने से मढ़वा दिया।
यह मंदिरबहुत बार #ध्वस्त हुआ। आज जो मंदिर स्थित है
उसका #निर्माण चौथी बार हुआ है। 1585 ई. में
बनारस से आए मशहूर #व्यापारी_टोडरमल ने इस
मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में जब
#औरंगजेब का शासन काल तब भी इस मंदिर को
बहुत हानि पहुँचाया गया।
गंगा तट पर सँकरी विश्वनाथ गली में स्थित विश्वनाथ
मंदिर कई मंदिरों और पीठों से घिरा हुआ है। यहाँ
पर एक #कुआँ भी है, जिसे #ज्ञानवापी की संज्ञा दी
जाती है, जो मंदिर के उत्तर में स्थित है। विश्वनाथ
मंदिर के अंदर एक मंडप व गर्भगृह विद्यमान है।
#गर्भगृह के भीतर #चाँदी से मढ़ा भगवान विश्वनाथ
का 60 सेंटीमीटर ऊँचा शिवलिंग विद्यमान है। यह
शिवलिंग काले पत्थर से निर्मित है। हालाँकि मंदिर
का भीतरी परिसर इतना इतना व्यापक नहीं है, परंतु
वातावरण पूरी तरह से शिवमय है।
. महिमा_और_मुख्य तीर्थ-
सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी
की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही
मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए
प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं.
जिससे वह आवगमन से छुट जाता है. चाहे मृत-
प्राणी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि
जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित
जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर
के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं-
दशाश्वेमघ.
लोलार्ककुण्ड,
बिन्दुमाधव,
केशव और
मणिकर्णिका
ये पाँच प्रमुख तीर्थ हैं, जिनके कारण इसे ‘अविमुक्त
क्षेत्र कहा जाता है। काशी के उत्तर में ओंकारखण्ड,
दक्षिण में केदारखण्ड और मध्य में विश्वेश्वरखण्ड में ही
बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध है। ऐसा सुना जाता है कि
मन्दिर की पुनः स्थापना आदि जगत गुरु शंकरचार्य
जी ने अपने हाथों से की थी।
ये दुनिया का इकलौता विश्वनाथ मंदिर जहां शक्ति के
साथ विराजमान हैं शिव.... द्वादश ज्योतिर्लिंगों में
प्रमुख काशी विश्वनाथ के दरबार में शिवरात्रि पर
आस्था का जन सैलाब उमड़ता है। यहा वाम रूप में
स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के
साथ विराजते हैं। यह अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं
और देखने को नहीं मिलता है।
काशी विश्वनाथ_मदिर_से_जुड़े_11_फैक्ट्स
1. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने
भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं।
दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में
विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा
जाता है।
2. देवी भगवती के दाहिनी ओर विराजमान होने से
मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है। यहां
मनुष्य को मुक्ति मिलती है और दोबारा गर्भधारण नहीं
करना होता है। भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र
देकर लोगों को तारते हैं। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य
बिना शिव अराधना के मुक्ति नहीं पा सकता।
3. श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं।
इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही
विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और
देखने को नहीं मिलता है।
4. विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें
ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। तांत्रिक
सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान है। इसे श्री यंत्र-तंत्र
साधना के लिए प्रमुख माना जाता है।
5. बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार
प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं - 1. शांति द्वार। 2. कला
द्वार। 3. प्रतिष्ठा द्वार। 4. निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों
का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई
जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों
और तंत्र द्वार भी हो।
6. बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में
मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है. संपूर्ण विद्या
और हर कला से परिपूर्ण दरबार। तंत्र की 10 महाविद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का
नाम ही ईशान है।
7. मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबाविश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का
मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है।
इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन
होता है। यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप
विनष्ट हो जाते हैं।
8. भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिकंटक विराजते
यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदागिन
क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र
जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों के बीच में
ज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-
गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है, जो
त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है। इसीलिए कहा
जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकता।
9. बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में
विराजमान है। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण
करते हैं। रात्रि नौ बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती
किया जाता है तो वह राज वेश में होते हैं। इसीलिए
शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं।
10. बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में
प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर
काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु
के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा
को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।
11. बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्म
जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। शिवरात्रि में बाबा
विश्वनाथ औघड़ रूप में भी विचरण करते हैं। उनके
बारात में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी
सभी शामिल होते हैं।
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